बारिश की पहली बूंद जब अतृप्त धारा पर गिरती है।।
तब धरती की काया भी अपना रूप बदलती है।।
कुछ पुष्प नए खिल जाते है कुछ पौध नई उग जाती है
कुछ चेहरों पर मुस्कान भरी प्रेम तरंग छा जाती है,
बारिश की पहली बूंद जब अतृप्त धारा पर गिरती है।।
ना रंग भरा इन बूंदों में ना ये कुछ बतलाती है
पर फिर भी ये चुपके से हमसे कुछ कह जाती है।।
बेरंग बरसती बूंदों में रंगो का गई संसार भरा हर बूंद
को थोड़ा पढ़लो बस है कुदरत का इतिहास बड़ा ,
कुदरत का इतिहास बना खुद कुदरत ही समझती है।।
बारिश की पहली बूंद जब अतृप्त धरा पर गिरती है।।
झुलस रही थी वसुंधरा ,भानु - भास्कर के ताप से
प्रथम बूंद ने की तृप्ति अपने पूर्ण संताप से।।
बर्खा से संताप मिला तब धरती भी इठलाती है।।
बारिश की पहली बूंद जब, अतृप्त धरा पर गिरती है।।
पूर्व दिशा में खिलते पल्लव पश्चिम में पंछी राग सुनाते
उत्तर मै होता शंखनाद दक्षिण में संगीत सजाते है।।
है चहुं दिशाए कोलाहल, मारूत भी हां लगती है।।
बारिश की पहली बूंद अतृप्त धरा पर गिरती है।।
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beautiful full poem
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