कलवार (जायसवाल) जाति का सम्बन्ध हैहय वंश जुड़ा है , हैहय वंशी क्षत्रिय थे,इसके पीछे इतिहास है,वेदों और हरिवंश पुराण में प्रमाण मिलता हैं की कलवार वंश का उत्पति भारत के महान चन्द्र वंशी क्षत्रिय कुल में हुआ हैं. इसी वंश में कार्तवीर्य,सहस्त्रबाहू जैसे वीर योद्धा हुए सहस्त्रबाहू के विषय में एक कथा यह भी प्रचलित है कि इन्ही से राजा यदु से यदुवंश प्रचलित है , जिसमे आगे चलकर भगवन श्री कृष्णा एवं बलराम ने जन्म लिया था. इसी चन्द्रवंशी की संतान कलवार हैं |
हरिवंश पुराण के अनुसार महर्षि वैशम्पायन ने राजा भारत को उनके पूर्वजों का वंश वृत्त बताते हुए कहा कि राजा ययाति का एक तेजस्वी पुत्र हुआ " यदु " यदु के पांच पुत्र हुए १.सस्त्रद २. पयोद ३.क्रोस्टा ४. नील और ५.आन्जिक नाम के हुये। इनमे से पहला पुत्र सहस्त्रद के परम धार्मिक तीन पुत्र १."हैहय" २. हय ३. वेनुहय नाम के हुए . हैहय के पुत्र धर्म नेत्र हुए उनके कार्त और कार्त के साहन्ज आत्मज है। जिन्होंने अपने नाम से साहन्जनी नामक नगरी बनाई, साहंज के पुत्र और "हैहय" के प्रपोत्र राजा महिष्मान हुए जिन्होंने महिस्मती नाम की पूरी बसाई,(वह आज भी धर्मध्वजा को लहरा रही है एवं मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र में महेश्वर के नाम से प्रसिद्द है. महेश्वर शहर मध्य प्रदेश के खरगोन जिलें में माँ नर्मदा के किनारें स्थित है.) महिष्मान के पुत्र प्रतापी भद्रश्रेन्य है जो वाराणसी के अधिपति थे, भद्रश्रेन्य के विख्यात पुत्र दुर्दम थे। दुर्दम के पुत्र महाबली कनक हुए और कनक के लोक विख्यात चार पुत्र १.कृतौज १. कृतवीर्य ३. कृतवर्मा ४. क्रिताग्नी थे। कृतवीर्य पुत्र अर्जुन हुए |
जिस चन्द्र वंश ने अपनी पताका पूरे संसार में फैलाई,परशुराम द्वारा भी इस वंश को नष्ट करने का प्रयास किया गया,परिणाम यह हुआ की कुछ कुरुक्षेत्र में कुछ प्रभास क्षेत्र में लड़ मिटे,बांकी जो बचे उनसे चन्द्र वंश,हैहये कलवार वंश का नाम चलता रहा, राज कुल में पले बढे, कलवारो के सामने जीवन निर्वाह की बड़ी समस्या खड़ी हो गई, अतः क्षत्रिय धर्म कर्म छोड़कर वैश्य कर्म अपना लिया, व्यवसाय करने के कारण वैश्य या बनिया कहलाने लगे, इनमे से अधिकतर शराब का व्यवसाय करने लगे। कलवार शब्द की उत्पत्ति, मेदिनी कोष में कल्यापाल शब्द का ही अपभ्रंश कलवार हैहय क्षत्रिय हैं | पद्मभूषण डा० हजारी प्रसाद द्विवेदी ने अपनी पुस्तक अशोक का फूल में लिखा हैं की कलवार वैश्य हैहय क्षत्रिय थे,सेना के लिए कलेऊ(दोपहर का खाना) की व्यवस्था करते थे, इसीलिए, वे तराजू पकड़ लिए और बनिया(वेश्य) हो गए,क्षत्रियो के कलेवा में मादक(मदिरा) द्रव्य भी होता था, इसी लिए ये मादक द्रव्यों का कारोबार भी करने लगे | श्री नारायण चन्द्र साहा की जाति विषयक खोज से यह सिद्ध होता हैं की कलवार उत्तम क्षत्रिय थे| गजनवी ने कन्नौज पर हमला किया था,जिसका मुकाबला कालिंदी पार के कल्वारो ने किया था, जिसके कारन इन्हें कलिंदिपाल भी बोलते थे, इसी का अपभ्रंश ही कलवार है|
कलवार जाति के तीन बड़े हिस्से हूए हैं,वे हैं प्रथम पंजाब दिल्ली के खत्री, अरोरे कलवार, यानि की कपूर, खन्ना, मल्होत्रा, मेहरा, सूरी, भाटिया , कोहली, खुराना, अरोरा, इत्यादि, दूसरा हैं राजपुताना के मारवाड़ी कलवार याने अगरवाल, वर्णवाल, लोहिया आदि. तीसरा हैं देशवाली कलवार जैसे अहलूवालिया, वालिया, बाथम, शिवहरे, माहुरी, शौन्द्रिक, साहा, गुप्ता, महाजन, कलाल, कराल, कर्णवाल, सोमवंशी, सूर्यवंशी, जैस्सार, चौकसे, जायसवाल, व्याहुत, चौधरी, प्रसाद, भगत आदि. कश्मीर के कुछ कलवार बर्मन, तथा कुछ शाही उपनाम धारण करते हैं, झारखण्ड के कलवार प्रसाद, साहा, चौधरी, सेठ, महाजन, जायसवाल, भगत, मंडल, आदि प्रयोग करते हैं. नेपाल के कलवार शाह उपनाम का प्रयोग करते हैं. जैन पंथ वाले जैन कलवार कहलाये.ब्रह्ममा से भृगु, भृगु से शुक्र, शुक्र से अत्री ऋषि , अत्री से चन्द्र देव, चन्द्र से बुद्ध, बुद्ध से सम्राट पुरुरवा, पुरुरवा से सम्राट आयु, आयु से नहुष, नहुष से ययाति, ययाति से पुरु, पुरु से चेदी कल्यपाल, कलचुरी, कलार , कलवार,वंश चला जो की जायसवाल, कलवार, शौन्द्रिक, जैस्सार, व्याहुत कहलाये. इस प्रकार से हम देखते हैं की कलवार वैश्य जाति की उत्पत्ति बहुत ही गौरव पूर्ण हैं. जिसका हमें सभी वैश्यों को गर्व करना चाहिए, हम सभी वैश्य हैं,और सभी ३७५ जातियों में अपने पुत्र ,पुत्री का विवाह सम्बन्ध करना चाहिए. हमारी संख्या लगभग २५ करोड़ हैं, हमें यह नहीं भूलना चाहिए.
कलालों को प्राचीन काल में 'शौंडिक' कहते थे। शैंडिक शुंडिक से बना है। शुंडिक मद्य चुआने के शुंडाकृतिक भबके को कहते हैं और भबके (घड़े) से मद्य चुआनवाले व्यक्ति को शौंडिक। शौंडिक के रूप में इनका उल्लेख रामायण, महाभारत, स्मृतियों, धर्मशास्त्रों और पुराणों आदि में हुआ है। 'शूँडी', कलालों की एक उपजाति का नाम भी है। पाणिनि ने शौंडिक नामक आय का उल्लेख किया है। मद्य विभाग से प्राप्त आय का यह नाम था। कौटिलीय अर्थशास्त्र में उल्लेख है कि इस प्रकार का व्यापार करनेवाले व्यक्तियों को लाइसेंस दिया जाता था और उनसे दैवसिकमत्ययम् (लाइसेंस फ़ीस) लिया जाता था।
जिस चन्द्र वंश ने अपनी पताका पूरे संसार में फैलाई,परशुराम द्वारा भी इस वंश को नष्ट करने का प्रयास किया गया,परिणाम यह हुआ की कुछ कुरुक्षेत्र में कुछ प्रभास क्षेत्र में लड़ मिटे,बांकी जो बचे उनसे चन्द्र वंश,हैहये कलवार वंश का नाम चलता रहा, राज कुल में पले बढे, कलवारो के सामने जीवन निर्वाह की बड़ी समस्या खड़ी हो गई, अतः क्षत्रिय धर्म कर्म छोड़कर वैश्य कर्म अपना लिया, व्यवसाय करने के कारण वैश्य या बनिया कहलाने लगे, इनमे से अधिकतर शराब का व्यवसाय करने लगे। कलवार शब्द की उत्पत्ति, मेदिनी कोष में कल्यापाल शब्द का ही अपभ्रंश कलवार हैहय क्षत्रिय हैं | पद्मभूषण डा० हजारी प्रसाद द्विवेदी ने अपनी पुस्तक अशोक का फूल में लिखा हैं की कलवार वैश्य हैहय क्षत्रिय थे,सेना के लिए कलेऊ(दोपहर का खाना) की व्यवस्था करते थे, इसीलिए, वे तराजू पकड़ लिए और बनिया(वेश्य) हो गए,क्षत्रियो के कलेवा में मादक(मदिरा) द्रव्य भी होता था, इसी लिए ये मादक द्रव्यों का कारोबार भी करने लगे | श्री नारायण चन्द्र साहा की जाति विषयक खोज से यह सिद्ध होता हैं की कलवार उत्तम क्षत्रिय थे| गजनवी ने कन्नौज पर हमला किया था,जिसका मुकाबला कालिंदी पार के कल्वारो ने किया था, जिसके कारन इन्हें कलिंदिपाल भी बोलते थे, इसी का अपभ्रंश ही कलवार है|
कलवार जाति के तीन बड़े हिस्से हूए हैं,वे हैं प्रथम पंजाब दिल्ली के खत्री, अरोरे कलवार, यानि की कपूर, खन्ना, मल्होत्रा, मेहरा, सूरी, भाटिया , कोहली, खुराना, अरोरा, इत्यादि, दूसरा हैं राजपुताना के मारवाड़ी कलवार याने अगरवाल, वर्णवाल, लोहिया आदि. तीसरा हैं देशवाली कलवार जैसे अहलूवालिया, वालिया, बाथम, शिवहरे, माहुरी, शौन्द्रिक, साहा, गुप्ता, महाजन, कलाल, कराल, कर्णवाल, सोमवंशी, सूर्यवंशी, जैस्सार, चौकसे, जायसवाल, व्याहुत, चौधरी, प्रसाद, भगत आदि. कश्मीर के कुछ कलवार बर्मन, तथा कुछ शाही उपनाम धारण करते हैं, झारखण्ड के कलवार प्रसाद, साहा, चौधरी, सेठ, महाजन, जायसवाल, भगत, मंडल, आदि प्रयोग करते हैं. नेपाल के कलवार शाह उपनाम का प्रयोग करते हैं. जैन पंथ वाले जैन कलवार कहलाये.ब्रह्ममा से भृगु, भृगु से शुक्र, शुक्र से अत्री ऋषि , अत्री से चन्द्र देव, चन्द्र से बुद्ध, बुद्ध से सम्राट पुरुरवा, पुरुरवा से सम्राट आयु, आयु से नहुष, नहुष से ययाति, ययाति से पुरु, पुरु से चेदी कल्यपाल, कलचुरी, कलार , कलवार,वंश चला जो की जायसवाल, कलवार, शौन्द्रिक, जैस्सार, व्याहुत कहलाये. इस प्रकार से हम देखते हैं की कलवार वैश्य जाति की उत्पत्ति बहुत ही गौरव पूर्ण हैं. जिसका हमें सभी वैश्यों को गर्व करना चाहिए, हम सभी वैश्य हैं,और सभी ३७५ जातियों में अपने पुत्र ,पुत्री का विवाह सम्बन्ध करना चाहिए. हमारी संख्या लगभग २५ करोड़ हैं, हमें यह नहीं भूलना चाहिए.
कलालों को प्राचीन काल में 'शौंडिक' कहते थे। शैंडिक शुंडिक से बना है। शुंडिक मद्य चुआने के शुंडाकृतिक भबके को कहते हैं और भबके (घड़े) से मद्य चुआनवाले व्यक्ति को शौंडिक। शौंडिक के रूप में इनका उल्लेख रामायण, महाभारत, स्मृतियों, धर्मशास्त्रों और पुराणों आदि में हुआ है। 'शूँडी', कलालों की एक उपजाति का नाम भी है। पाणिनि ने शौंडिक नामक आय का उल्लेख किया है। मद्य विभाग से प्राप्त आय का यह नाम था। कौटिलीय अर्थशास्त्र में उल्लेख है कि इस प्रकार का व्यापार करनेवाले व्यक्तियों को लाइसेंस दिया जाता था और उनसे दैवसिकमत्ययम् (लाइसेंस फ़ीस) लिया जाता था।
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Bahut acha
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